Madhu varma

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लेखनी कविता - रेल - बालस्वरूप राही

रेल / बालस्वरूप राही


पहले धुआं उड़ाती थी,
बड़ा कोला खाती थी।
अब बिजली से भागे रेल,
निकली सबसे आगे रेल।

लगती बिलकुल नई-नई,
डिब्बे इसमें जुड़े कई,
फिर भी रहती रेलम-पेल,
धक्का-मुक्की, ठेलम-ठेल।

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